लखनऊ की नई लाईब्रेरियां !
कुछ दिन पहले लखनऊ के पुस्तकालयों के बारे में बात की थी,
मौक़ा लाईब्रेरी / ळाईब्रेरियन दिवस का था. तब पहले के पुस्तकालयों से अब तक अस्तित्व
बचाये हुए कुछ पुस्तकालयों की बात की किन्तु लखनऊ में इधर के कुछ सालों में ‘उगी’ लाईब्रेरियों
की बात पोस्ट बड़ी होने के डर से न कर सका, अब करता हूँ.
नौकरी के सिलसिले में कई साल प्रदेश से बाहर तैनात रहा. जब
आता था तो जगह-जगह चौबीसों घण्टे चलने वाली लाईब्रेरियों ( इन्हे पुस्तकालय कहने का
जी नही चाह रहा – क्यों ! जिनका इनसे साबका पड़ा होगा वे जान ही रहे होंगे, बाक़ी अभी
जान जाएंगे ) के बोर्ड देखे – 24 X
7, वाई-फाई सुविधा से युक्त,
किन्ही में कैफे भी. मैं जानकीपुरम मे रहता हूँ और इन्जीनियरिंग कॉलेज से लेकर कपूरथला
तक और उधर हनुमान मंदिर तक कुछ नही तो पचीसों तो हैं ही, पचास तक भी हो सकते हैं. कुछ
बेसमेण्ट में तो कुछ ऊपरी मंज़िलों में. देख कर ख़ुशी और कौतूहल होता था कि इतनी लाईब्रेरियां
और कौतूहल ये कि अचानक से ऐसा क्या हुआ जो लोग इतने पढ़ीस हो गये और इधर के ही. जब
इधर इतने हैं तो शहर भर में तो सैकड़ों की तादाद में होंगी ही. अन्दर जाकर देखने का
मौक़ा न लगा सो कौतूहल बना रहा. जब लखनऊ वापसी
हुई तो एक मे गया फिर कई एक मे गया कि सब ऐसी हैं या कोई पुस्तकालय जैसी भी है.
पुस्तकालय में ढ़ेरों किताबें होती हैं जो बहुधा साहित्यिक
और विविध विधाओं की होती हैं. कुछ ऐसे पुस्तकालय भी होते हैं जिनमें कोर्स ( बहुधा
स्नातक एवं उच्च कक्षाओं की ) की किताबें भी
बहुतायत से होती हैं या कोर्स की किताबें ही
होती हैं. कुछ में वाचनालय भी होता हैं जहाँ लोग बिना सदस्य बने या निर्गत कराए बैठ
कर किताबें पढ़ सकते हैं, नोट्स बना सकते हैं, फोटो कॉपी ( सशुल्क ) करा सकते हैं.
अधिकतर ऐसे पुस्तकालयों में तीन-चार किताबें साल भर या सत्र भर के लिये निर्गत की जाती
हैं. इनमें सदस्य बनना होता है. इन पुस्तकालयों से उन छात्रों को बड़ी मदद हो जाती
है जो किताबें खरीदने की स्थिति मे नही होते या खरीदना नही चाहते. लखनऊ विश्वविद्यालय
में टैगोर लाईब्रेरी के साईड में ‘कोआपरेटिव लेण्डिंग लाईब्रेरी ( CLL के नाम से अधिक जानी जाती थी ) थी ( हो सकता है, अब भी हो
) किन्तु उसमें केवल विश्वविद्यालय के छात्रों को ही यह सुविधा थी. ऐसे अन्य पुस्तकालयों
में आचार्य नरेन्द्रदेव पुस्तकालय और चन्द्रभानु गुप्त नव चेतना सदन ( अपट्रान बिल्डिंग,
अशोक मार्ग ) में स्थित लाईब्रेरी में यह सुविधा थी.
जब इन नयी लाईब्रेरियों में गया तो पाया कि ये परम्परागत
अर्थ में लाईब्रेरी हैं ही नही बल्कि ये स्व अध्ययन केन्द हैं जो केवल पढ़ने की जगह
और शांत वातारण उपलब्ध कराते हैं. इनमें किताबें नही होती हैं ( अपवाद स्वरूप कुछ में
एक-दो अख़बार, कुछ पत्रिकाएं और कुछ किताबें मिलीं ) जैसे साईबर कैफे में छोटे-छोटे
केबिन बने होते हैं वैसे ही कतार में पचीसों केबिन होते हैं ,जिनमें छात्र बैठ कर पढ़ते
और नोट्स बनाते हैं. किताबें वे अपनी लाते हैं और चूँकि ये चौबीसों घण्टे खुलने वाली
लाईब्रेरियां हैं तो वे अपने चुने हुए तयशुदा वक़्त पर आते और उसी वक़्त के दायरे में
पढ़ते हैं. अब लगातार पढ़ते / नोट्स बनाते रहते हैं तो कुछ में चाय वगैरह की व्यवस्था
(सदस्यता शुल्क के अलावा, जितनी लें उतने के शुल्क पर ) भी रहती है. यह आवासीय भवनों
में भी हैं और व्यवसायिक भवनों में भी. एक केयर टेकर भी होता है जो सदस्यों के आने
और रुकने का समय नोट करता है ( ताकि कोई तयशुदा समय से पहले न आये और अपने टाईम स्लॉट
से अधिक न बैठने पाये ) सामान्य देखभाल करता है, यह भी देखता है कि कोई अवाञ्छित गतिविधि
न हो. वह कुछ सामान्य व्यवस्था ( जैसे बिजली, पानी, सफाई वगैरह ) भी करता है. चूँकि
ये लाईब्रेरी हैं नही तो उस व्यक्ति को लाईब्रेरियन कतई नही कहा जा सकता, होता भी नही
है, वह केयर टेकर भर होता है. यह व्यवसाय है
तो इसका मालिक या तो एक ऑफिसनुमा जगह में बैठता है या फिर तय समयावधि में आता है. सदस्यता
आदि देने का काम वही करता है. सामान्यतः यह राशि 800/- से 1200/-
तक होती है.
कई लाईब्रेरियां देखीं कि शायद कोई वास्तव में लाईब्रेरी
जैसी हो जहाँ किताबें हों, किताबें निर्गत की जाती हों और वाचनालय हो किन्तु सब केवल
पढ़ने की जगह उपलब्ध कराने वाले केन्द्र निकले. इनमें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी
करने वाले ही होते हैं. अब सवाल ये कि इन्हे लाईब्रेरी क्यों नाम दिया गया. शायद लाईब्रेरी
व्यावसायिक गतिविधि में न गिनी जाती हो और इस पर टैक्स और विभिन्न विभागों से अनुमति
आदि की आवश्यकता न होती हो या उनमें कुछ छूट हो. कुछ ऐसे व्यावसायिक भवन हैं जिनमें
शादी-व्याह और अन्य आयोजन होते हैं, वे बाज़ार दर पर किराये पर दिये जाते हैं किन्तु
नाम “सत्संग भवन” होता है. सत्संग आदि धार्मिक
गतिविधियों में आते हैं, उनमें व्यावसायिक गतिविधियों, जैसे कर एवं अन्य प्रावधान नही
होते सो वे सत्संग भवन के नाम से रजिस्टर्ड होते हैं. मेरी तरफ एक “ सत्संग भवन” है
जिसमें सत्संग या कोई धार्मिक आयोजन आज तक नही हुआ, वह सत्संग की छूट लेकर व्यावसायिक
गतिविधियां चला रहा है – ये “लाईब्रेरियां” भी इसीलिए लाईब्रेरी नाम से हैं. एक यह
बात छोड़ दी जाय तो यह चलन स्वागतयोग्य ही है. वास्तविक पुस्तकालय निर्धारित समय पर
ही खुलते-बन्द होते हैं जबकि ये चौबीसो घण्टे खुले रहते हैं जिनमें छात्र अपनी सुविधानुसार
टाईम स्लॉट में अध्ययन करते हैं. चौबीसों घण्टे चलने के बावजूद कोई आपत्तिजनक गतिविधि
या झगड़ा-झञ्झट होते नही सुना.
अभी कुछ दिन पहले एक बोर्ड देखा, Books with Coffee (The hangout Library) कुछ अलग सा नाम
था, Books का भी उल्लेख था और नाम में इसे पहले रखा गया था सो पहले
बहुत सी ऐसी लाईब्रेरियां देखे होने के बावजूद क्षीण सी सम्भावना लगी कि शायद यह वास्तविक
लाईब्रेरी हो, नही तो Book Café तो हो ही.
आशङ्कित होते हुए भी गया किन्तु यह भी वैसा ही ‘सेल्फ स्टडी सेन्टर’ निकला .
कोरोना काल होने से रौनक थी ही नही, करीब पचास लोगों की जगह होते हुए भी बस एक युवक
और एक युवती ही थे और वे भी स्टडी नही कर रहे थे. मालूमात हासिल करने की नियत से पूछा
तो उन्होनें ऊपर इशारा कर दिया. ऊपर गया तो कुछ मिस्त्रीनुमा लोग काम कर रहे थे, पूछने
पर बताया, “ भैया ( मालिक ) शाम को आते हैं “ स्टडी करने वाले जिस मुद्रा / भंगिमा
में थे उससे इन लाईब्रेरियों के ‘मिलन केन्द्र’ के रूप में भी विकसित होने की सम्भावना
लगी.
ऊपर Book Café का ज़िक्र किया. लखनऊ में यह भी हैं और बहुत ही
अच्छी, स्तरीय, बेहतरीन साज-सज्जा, साहित्यिक किताबों साहित्यिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र और परिवेश तथा बेहतरीन कैफे के साथ हैं. पोस्ट भी बड़ी
हो रही है तो यदि आप इच्छुक होंगे तो अगली पोस्ट में उनकी चर्चा करूँगा. तब तक न हो
तो एक चक्कर इन ‘लाईब्रेरियों’ का लगा आईये.
अरे वाह
ReplyDeleteलाइब्रेरी के बारे में यह लेख बार-बार पढ़ने योग्य है। साधुवाद
धन्यवाद पढ़ने और टिप्पणी के लिए, आशा है और पोस्ट्स भी देखी होंगी. लाईब्रेरी पर ही एक पोस्ट और है 'लाईब्रेरियन / लाईब्रेरी दिवस और हम !' शीर्षक से. यह सितम्बर २०२० को पोस्ट की है. कृपया इसे भी देखें और सम्मति दें.
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